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Tuesday 8 December 2015

नौकरी के लिए सुने 40 इंकार, फिर कामयाबी की बहुत बड़ी हाँ


टेस्टर बनने के फैसले को बदलने का दबाव
प्रमिला का बचपन एक आम साधारण बच्चों जैसा था। उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई जेएसएस कॉलेज बेंगलौर से साल 2003 में की। इसके बाद ओरेकल में टेस्टर की भूमिका निभाई। इस काम से पहले उन्होंने जहाँ भी नौकरी के लिए कोशिश की वहां से उन्हें इनकार सुनने को मिला।40 कंपनियों ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया था। शुरूआती दिनों में उन्होंने महसूस किया कि उनके साथी इस बात से खुश नहीं हैं कि वो टेस्टर की भूमिका में हैं और उनके दोस्त उनके फैसले पर दोबारा विचार कर प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में आने को कहते। वो इस बात से टूट सी गई थीं कि टेस्टिंग उद्योग के साथ सौतेला व्यवहार तो होता ही है साथ ही उनके दोस्तों में इस क्षेत्र को लेकर समझ कम है।
moolya
इस भूमिका में आने के लिए किया कड़ा परिश्रम
प्रमिला टूट भले ही गईं लेकिन उनमें हिम्मत अभी बची हुई थी। तभी तो उन्होंने सॉफ्टवेयर टेस्टिंग को लेकर अपनी जानकारी बढ़ाने के साथ साथ जिज्ञासा को भी बढ़ाया। इसके बाद वो मूल्य के साथ जुड़ने से पहले मैकऐफी, सपोर्ट सॉफ्ट और वीकेंड टेस्टिंग में काम कर चुकी हैं। वह जानती हैं कि टेस्टर की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती है तभी तो कोई भी उत्पाद ये सेवा को सामने लाया जाता है तो टेस्टर ही है जो बताता है कि उत्पाद अच्छा है या खराब। हालांकि हमारे देश में ऐसे लोगों की संख्या काफी कम है। सॉफ्टवेयर टेस्टिंग दरअसल एक कुशल कारीगरी है जिसके लिए कड़ा परिश्रम करना पड़ता है। प्रमिला कहती हैं कि लिखना तो सबको आता है लेकिन हर कोई मैल्कम ग्लैडवेल की तरह नहीं लिख सकता। इसी तरह इस क्षेत्र में भी जुनून, साहस, उत्कृष्टता और अच्छा टेस्टर बनने की उम्मीद होनी चाहिए।
काम है पता लगाना उत्पाद में गलती कहां रह गयी
टेस्टिंग की पेचीदगियों के बारे में बात करते हुए वो बताती हैं कि किसी भी टेस्टर का काम ये पता लगाना होता है कि उत्पाद में कहां गलतियां हो रही हैं। इसके लिए उसमें सहानुभूति, विज्ञान की जानकारी, तहकीकात करने का कौशल और गलत दिशा की ओर जा रही चीजों को समझने की ताकत होनी चाहिए। अगर कोई अपने काम को लेकर जोशीला नहीं होगा तो वो इस काम से परेशान होने लगेगा जिसका असर उसके साथ काम कर रहे दूसरे लोगों पर भी पड़ सकता है।
टेस्टर के लिए प्रोग्रामिंग में बेहतर होना जरूरी
प्रमिला का मानना है कि उनको अपने काम में और ज्यादा वक्त लगाना चाहिए, साथ ही टेस्टिंग से जुड़े उपकरणों का ज्ञान बढ़ाने पर भी ध्यान देना चाहिए। उनका मानना है कि अगर कोई प्रोग्रामिंग में बेहतर है तो वो बेहतर टेस्टर बन सकता है। प्रमिला ने साल 2008 में पहली बार टेस्टिंग समुदाय के साथ बातचीत की थी तब से वो ऐसी कई कांन्फ्रेंस और वर्कशॉप में हिस्सा ले चुकी हैं। इसके अलावा वो निरंतर एक जैसी सोच रखने वाले लोगों से मुलाकात भी करती रहती हैं। साथ ही वो ब्लॉग तो लिखती ही हैं टेस्टिंग से जुड़ी क्लासेस भी देती रहती हैं।
हर किसी को दी है खुलकर बात रखने की आजादी
प्रमिला को टेस्टिंग इंडस्ट्री में 11 साल हो गए हैं। उनका मानना है कि अपने सहयोगियों से ईमानदार राय मिलना कई बार कठिन होता है। अगर आप उनसे पूछते भी हैं तो भी वो अपनी बात आपके सामने नहीं रखते। इसी बात को समझते हुए प्रमिला ने मूल्य में हर किसी को अपनी राय खुलकर रखने का माहौल बनाने की कोशिश की है। शुरुआत में कुछ महिला टेस्टर के साथ प्रमिला को कुछ दिक्कत हुई लेकिन धीरे-धीरे उनको लगा कि दूसरों की बात भी सुननी चाहिए। इस दौरान वो एक शर्मीले इंसान की जगह बातचीत वाली एक प्रतिभा बन कर उभरी हैं।
प्रमिला की इच्छा
प्रमिला इस दुनिया को रहने के लिए बेहतर जगह बनाने की कोशिश में हैं। उनके मुताबिक हम हर चीज अपनी सुविधा मुताबिक इस्तेमाल करते हैं। जिसे कभी किसी ना किसी ने ना सिर्फ डिजाइन किया होता है बल्कि उसकी जांच भी की होती है। इसी तरह वो आने वाली पीढ़ी के लिए उनकी जिंदगी आसान बने इस पर काम कर रही हैं। वो पेशेवर लोगों से बात करना ज्यादा पसंद करती हैं क्योंकि उनको नेतृत्व, ईमानदारी, सच्चाई और कड़ी मेहनत बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं।
प्रमिला के शौक
टेस्टिंग के अपने पेशे के अलावा प्रमिला को लिखने का भी शौक है। इसके लिए वो ना सिर्फ ब्लॉग लिखती हैं बल्कि कई टेस्टिंग पत्रिकाओं में लेख भी लिखती हैं। उनको घूमने और खाने का शौक है। उनके इस काम में उनके बच्चे और उनका परिवार उनकी मदद करता है और वो उनके साथ वक्त बिताना पसंद करती हैं। हाल ही में उन्होंने योग का प्रशिक्षण भी शुरू किया है।
महिलाओं को हमारे समाज में दबाया हुआ है
प्रमिला अपने परिवार की पहली महिला सदस्य हैं जिन्होने 10वीं, 12वीं, और कॉलेज की पढ़ाई पूरी की। इसलिए वो जानती हैं कि आजादी की कीमत क्या होती है और वो उन्हें किस तरह प्रभावित कर सकती है। प्रमिला का मानना है कि महिलाओं को हमारे समाज में दबाया हुआ है। उनको पढ़ाई के बाद ये बताया जाता है कि वो नौकरी करने की जगह रसोई घर संभाल कर ही सुरक्षित रह सकती हैं। इतना ही नहीं जो महिला नौकरी करती है उससे उम्मीद की जाती है कि वो घर भी संभाले तभी समाज तय करता की कोई महिला अच्छी मां, पत्नी या बहू है।
33 फीसदी आरक्षण नहीं मानसिकता बदलें
उनके मुताबिक हमारे समाज में परिवर्तन महिलाओं को सिर्फ 33 प्रतिशत आरक्षण देने से दूर नहीं होगा। इसके लिए हमको एक ईकोसिस्टम बनाना होगा जहां पर हर कोई एक समान हो। क्यों हम महिलाओं से पूछते हैं कि कैसे वो अपने काम के साथ घर को संभालती हैं। इसके लिए हमें अपनी मानसिकता में बदलाव करना होगा।
महिलाओं को भरपूर मौका मिले
प्रमिला मूल्य की पहली महिला सदस्य हैं लेकिन उन्होंने सुनिश्चित कर दिया है कि कोई भी नई महिला यहां पर काम करे तो उसे अनुकूल वातावरण मिले। प्रमिला ना सिर्फ नए लोगों के इंटरव्यू लेती हैं बल्कि संगठन से जुड़ी नीतियों पर अपनी राय भी रखती हैं। उनका कहना है कि सौभाग्य से मूल्य शुरूआत से ही उनके लिए काफी मददगार रही है जहां पर उनको काम करने की आजादी के साथ साथ टेस्टिंग समुदाय और महिलाओं के लिए काम करने के भरपूर मौके मिलते हैं।
क्या जरूरी है
प्रमिला के मुताबिक ये जरूरी है कि आप ये जानें कि आप कोई काम क्यों कर रहे हैं और क्या कर रहे हैं ? क्या आप सिर्फ पैसे के लिए ऐसा कर रहे हैं या फिर अपने जोश से दूसरों की जिंदगी बदलने का माद्दा रखने की नीयत से अपने काम को अंजाम दे रहे हैं। जरूरत है तो स्पष्ट इरादों की। प्रमिला को अपने स्पष्ट इरादे और सोच पर पूरा विश्वास है।

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