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Tuesday 28 March 2017

63 बार ‘ना’ के बाद भी नहीं हारे, ‘‘कौशिक’’ और ‘‘नवीन’’, 64वीं बार में हुए सफल

कौशिक मुद्दा और नवीन जैन ने वर्ष 2014 में आरवीसीई बैंगलोर से इलेक्ट्राॅनिक्स और संचार के क्षेत्र में स्नातक किया और इंजीनियर बनने में कामयाब रहे। पढ़ाई के अंतिम वर्ष में ही इन दोनों को कैंपस प्लेसमेंट के जरिये अच्छी-खासी नौकरी मिल चुकी थी। कौशिक केपीएजी का हिस्सा बनने में कामयाब रहे थे जो उनके जैसे अधिकतर युवाओं के लिये एक सपने सरीखा था। लेकिन इससे एक वर्ष पूर्व ही यह जोड़ी अपने छठे सेमेस्टर के दौरान कुछ छोटी-मोटी परियोजनाओं पर काम करना प्रारंभ चुकी थी और ये दोनों अपना पूरा समय और ऊर्जा इन परियोजनाओं को समर्पित कर रहे थे। अपने स्टार्टअप को स्थापित करने की जद्दोजहद के बीच कौशिक एक ईमेल के माध्यम से बताते हैं, ‘‘काॅलेज के दिनों में नवीन और मैं छोटे रोबोट और हवरक्राफ्ट का निर्माण किया करते थे।’’ इन मशीनों पर काम करने के दौरान इन्हें महसूस हुआ कि इन्हें अपने रोबोट को और अधिक बेहतर बनाने के लिये उनके कट भागों को और अधिक सटीकता प्रदान करने की आवश्यकता है। इस काम के लिये इन्हें एक सीएनसी (कंप्यूटर संख्यात्मक नियंत्रक) राउटर की आवश्यकता थी लेकिन उस समय बाजार में उपलब्ध सबसे सस्ती मशीन भी इनकी पहुंच से दूर थी क्योंकि कीमत भी करीब 6 से सात लाख रुपये थी और यह रकम इनके लिये बहुत अधिक थी। उस समय को याद करते हुए कौशिक बताते हैं, ‘‘चूंकि हम उस मशीन को खरीद पाने में खुद को असमर्थ पाते थे इसलिये हमने अपनी स्वयं की मशीन का निर्माण करने का फैसला किया और हमें उसके बाद से पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी है। जिसकी शुरुआत हमारी अपनी समस्या के समाधान के रूप में हुई थी अब वह हमारे उपभोक्ताओं की समस्या का भी समाधान पेश करने वाला बनता जा रहा था।’’

इस प्रकार एथरियल मशीन्स (Ethereal Machines) की शुरुआत हुई। हालांकि अभी इनका आगे का रास्ता आसान नहीं था और वह बाधाओं से भरा हुआ था।

सबसे पहले तो इन्हें अपने सपनों को साकार करने के लिये अपनी नौकरी को अलविदा कहना पड़ा। इसके अलावा दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि इन्हें अपने उपभोक्ताओं को यह मानने के लिये राजी करना पड़ा कि काॅलेज के कुछ नये स्नातक ऐसी मशीनों का निर्माण कर सकते हैं जो उनकी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हों।


आखिरकार इन्होंने आगे बढ़ने का फैसला लिया और अपने एक दोस्त को उसका गैराज इन्हें देने के लिये मनाने के बाद उसमें एथरियल मशीन्स् का पहला कार्यलय खोला। एक प्रोटोटाइप का निर्माण करने और उसकी हाईपोथीसिस की पुष्टि करने के बाद इन्होंने आॅर्डर लेने के लिये बाजार का रुख किया और एक चीज जो इनके पक्ष में थी वह यह थी कि ये बाजार में सबसे कम कीमत वाले सीएनसी राउटर का निर्माण कर रहे थे। इस जोड़ी का दावा है कि संपूर्ण भारतवर्ष में उत्पादकों को अपनी मशीनों को अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं के हिसाब से अनुकूलित करने का प्रयास करने के दौरान काफी दिक्कतों और परेशनियों का सामना करना पड़ता है। एथरियल उनकी विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के अलावा उन्हें तकनीकी सहायता प्रदान करने मेें भी मदद करता है। इनकी मशीनों की सहायता से लकड़ी, संगमरमर, ग्रेनाइट, प्लास्टिक इत्यादि पर किसी भी प्रकार के 2डी या 3डी डिजाइन को खोदा या तराशा या फिर नक्काशी किया जा सकता है।
बाजार में उतरते ही इनका सामना जीवन की बहुत बड़ी सच्चाई से हुआ और अस्वीकृति जैसे इनके इंतजार में ही खड़ी थी। कौशिक बताते हैं, ‘‘अपना पहला आॅर्डर पाने से पहले मुझे 63 बार अस्वीकृति का सामना करना पड़ा।’’ यहां तक कि जब एक उपभोक्ता को इस बात का भान हुआ कि वे अभी तक काॅलेज के अंतिम सेमेस्टर में ही हैं तो उसने तो इन्हें अपने कार्यालय के बाहर ही फिंकवा दिया था। कौशिक कहते हैं, ‘‘एक उपभोक्ता ने तो हमें सिर्फ इसलिये अस्वीकार कर दिया था क्योंकि उसने भी इस क्षेत्र में कुछ करने का प्रयास किया था और वह बहुत बुरी तरह से विफल हुआ था।’’ संघर्ष के उस दौर में नवीन और कौशिक ने स्थापित होने के लिये बहुत कुछ किया और वे उस 280 वर्ग फुट के गैराज में खुद ही झाड़ू लगाते और किसी उपभोक्ता के आते ही खुद ही सेल्स प्रतिनिधि भी बन जाते। आखिरकार 64वीं बैठक के दौरान वे एक आॅर्डर पाने में कामयाब रहे। 


हालांकि बीते कुछ महीनों के दौरान एथरियल मशीन्स के उपभोक्ताओं की सूची में कोई बड़ा नाम तो नहीं जुड़ा है लेकिन इनका व्यापार काफी अच्छा रहा है। कौशिक कहते हैं, ‘‘हमें इस बात का गर्व है कि हम अपनी मशीनों के माध्यम से व्यक्तियों को उद्यमी बनने में सहायता करते हैं। हमारी मशीन खरीदने के बाद उपभोक्ता संगमरमर और लकड़ी पर नक्काशी करने के अलावा सटीक अंकन और काटने के साथ-साथ इंटीरियर डिजाइनरों के लिये आपूर्ती करने के अलावा कई अन्य कामों को सफलतापूर्वक अंजाम रहे हैं।’’

इनकी मशीनों की कीमत 2 लाख रुपये से लेकर 4 लाख रुपये की बीच आती है और इन्होंने अबतक मार्केटिंग पर एक भी पैसा खर्च नहीं किया है। कौशिक बताते हैं, ‘‘एक ऐसे समय में जब आईटी और सेवाओं के क्षेत्र से संबंधित स्टार्टअप शासन कर रहे हैं ऐसे में मेकेनिकल इंजीनियरिंग से संबंधित एक स्टार्टअप को स्थापित करना बहुत मुश्किल काम रहा है।’’ इनका व्यापार मुख्यतः इस जोड़ी के उस गहन तकनीकी ज्ञान पर निर्भर है जो इन्होंने वर्षों के दौरान अपने अनुभव से अर्जित किया है। विदेशों से मशीनों को आयात करने वाले लोग भारत में तकनीकी समर्थन तलाशने के दौरान बहुत चुनौतियों का सामना करते हैं और यही वह प्रमुख बिंदु है जहां ये दूसरों से कहीं आगे खड़ा होने में सफल होते हैं। 

अगर हम एक विस्तृत दृष्टिकोण से देखें तो बाजार में चीन की बनी हुई मशीनों की बहुतायत है और उपभोक्ताओं को इन मशीनों का संचालन सीखने के दौरान और किसी परेशानी के सामने आने पर काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कौशिक कहते हैं, ‘‘हमारी मशीनें हमारे द्वारा तैयार किये गए एक विशेष डिजाइन और तकनीक पर आधारित हैं जिसके चलते वे उपभोक्ताओं के लिये अधिक अनुकूल साबित होती हैं। इसके अलावा हमारे उपभोक्ताओं को इन मशीनों का संचालन इत्यादि सीखने में भी अधिक कठिनाई नहीं होती है क्योंकि हमारे इंजीनियर उनके साथ घंटो बैठते हैं और उन्हें प्रशिक्षण देने के लिये तत्पर रहते हैं।’’

बैंगलोर में स्थित इस कंपनी में अब 6 इंजीनियरों की टीम काम कर रही है। यह कंपनी उपभोकताओं से प्राप्त होने वाले सुझावों और शिकायतों के आधार पर सुधार करने के प्रयास कर रही है। फिलहाल भारत के 4 राज्यों में एथरियल की मशीनें काम कर रही हैं और इनका इनका इरादा समय के साथ आगे बढ़ने का है। अंत में कौशिक बताते हैं, ‘‘मैं देश के प्रत्येक राज्य में कम से कम एक मशीन लगाना चाहता हूँ। इसके अलावा हमारे पास खाड़ी देशों और श्रीलंका और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों से भी उपभोक्ता संपर्क कर रहे हैं क्योंकि उन्हें चीनी मशीनों पर भरोसा नहीं है। हमें उम्मीद है कि निकट भविष्य में हमारे द्वारा तैयार की गई मशीनें इन देशों के बाजारों में भी देखने को मिलेंगी।’’

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