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Saturday 25 March 2017

'मेरे बीजों से गर हो किसी का भला, तो फिर क्यूं रहे मुझको गिला।‘ प्रगतिशील किसान बलवान सिंह

हरियाणा स्थित भिवानी निवासी बलवान सिंह (50) एक नवप्रवर्तक और प्रगतिशील किसान हैं। उन्होंने अच्छी गुणवत्ता वाली उच्च उपजी प्याज की प्रजाति विकसित की है। किसान परिवार में जन्मे बलवान सिंह एक नटखट बच्चे थे और हॉकी के समान एक स्थानीय खेल ‘पिल्ला खुर्दा’ तथा ‘कबड्डी’ खेलना पसंद करते थे। यद्यपि स्कूल भेजने की अपेक्षा उनके माता-पिता उन्हें अपने कार्य में एक सहयोगी के रूप में रखना चाहते थे, लेकिन छोटे बलवान का पढ़ाई के प्रति खास झुकाव था। वह अपने प्रिय शिक्षक भीम सिंह के साथ गांव के स्कूल बारम्बार चले जाते थे। उनकी सादगी और उनके सिखाने के तरीके से बलवान सिंह बहुत प्रभावित थे। विज्ञान उनका प्रिय विषय था, लेकिन अनिश्चित आर्थिक स्थिति के कारण वह अपनी पढ़ाई 10वीं के बाद जारी नहीं रख सके। उनके माता-पिता भी चाहते थे कि वह उनके दैनिक काम में मदद करें।

तुरंत, उन्होंने जिंदल स्टील में नौकरी कर ली, लेकिन कुछ महीनों से अधिक दिन तक वह उसे जारी नहीं रख सके। वह पुलिस और सेना में भी चयनित हुए, लेकिन यह किस्मत ही थी कि कभी इसे ज्वाइन नहीं किया और कृषक बने रहे। पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे के बाद मिले एक एकड़ जमीन के साथ बलवान ने खेती के लिए खेत किराए पर लिया और कभी-कभी खेतों में मजदूर के रूप में भी काम किया। जहां कहीं भी उन्होंने काम किया वहां से कुछ बेहतर सीखा, खेती में उनकी अभिरुचि बढऩे लगी। पौधे की विभिन्न प्रजातियों पर शोध और उसका विश्लेषण ऐसी चीजें है जिसमें उन्हें आनंद आने लगा। जैविक खेती के समर्थन में उन्होंने नीम के पते व फल, गाय के गोबर, गोमूत्र का एक मिश्रण तैयार किया और खेतों में छिड़काव किया। पौधे की वृद्धि के लिए उन्होंने खरपतवार निकालने और सिंचाई जैसे दो महत्वपूर्ण काम को किया। जल की कमी के कारण उन्होंने वैकल्पिक ढंग से सिंचाई की। बलवान बताते हैं कि उस क्षेत्र में जल स्तर 60 फीट नीचे है और पानी नमकीन है जो पीएच बढ़ाता है। इसलिए अधिकतर सिंचाई नहर सिंचाई के माध्यम से की जाती है जो सूर्यास्त के बाद होती है। कृषि के अलावा अपने परिवार की वंशावली का पता लगाना उनकी रोचक पूर्वव्यस्तता थी। वह 200 साल पहले के अपने पारिवारिक इतिहास का पता लगाने का दावा करते हैं।

उत्पति

विभिन्न कंपनियों द्वारा आपूर्ति की जाने वाली बीज की गुणवत्ता और किसानों की अपेक्षाओं के बीच मेल नहीं होने के कारण बलवान सिंह ने खुद ही कुछ प्रजातियों को विकसित करने के बारे में सोचा। बाजार का सावधानीपूर्वक अवलोकन करने के बाद उन्होंने पाया कि प्याज की फसल उनके प्रयोग के लिए अधिक उपयुक्त रहेगी। 1984 के आसपास उनके भाई ने पड़ोस के गांव से कुछ प्याज लाया। बलवान ने पाया कि बड़ा और सुगठित आकार के कंद, लाल रंग, मोटा और घनिष्ट छिलका इस प्याज की विशेषताएं हैं। एक अनुभवी किसान होने के नाते वह जानते थे कि अच्छी गुणवत्ता वाले पौधे से अच्छे फल का उत्पादन होता है। पौधे के स्वास्थ्य, कसा हुआ छिलका, बड़े और बेहतर आकार के लाल कंद के मापदंडों पर पौधों को श्रेणीबद्ध करना और अंकुर तैयार करना शुरू किया। साल दर साल वह इसी प्रक्रिया को प्रजाति को परिशुद्ध करने और इसकी विशिष्टता को स्थाई करने के लिए दोहराते रहे। 17 वर्षों के श्रमसाध्य प्रयास के बाद अंतत: वह प्याज की अपनी प्रजाति की विशेषताओं को स्थापित करने में सफल रहे। इसने लंबा समय लिया लेकिन निरंतर प्रयास और परिवार के समर्थन से मुकाम हासिल किया। परिवार के लोग भी फसल के प्रदर्शन का वर्षवार आंकड़ा बनाकर रखते थे, जो अच्छा प्रदर्शन दिखाता था। पूरे समय उन्हें अपनी पत्नी से योग्यतपूर्ण समर्थन मिला जो कई बार खुद ही परिवार का और खेत का ख्याल रखती थीं। जब बलवान काम के सिलसिले में यात्रा पर जाते थे, वह हमेशा उनकी प्रयोग में असफलता और बीमारी या अवसाद के सिलसिले में उनके पक्ष में खड़ी रहती थी।

बलवान प्याज

इस प्याज की प्रजाति कसे हुए छिलके के कारण सभी गुणों से युक्त एक उच्च उपजी प्रजाति है। इसकी उपज 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है और छल्ले की मोटाई, नुकसान को सहने की क्षमता और उदारवादी तीखापन कुछ ऐसी विशेषताएं जो चिह्नित की गईं हैं। इसके लगभग पांच सेमी व्यास के गहरे लाल गोलाकार कंद, 0.8 सेमी मोटाई की गर्दन और 50-60 ग्राम वजन इसे परंपरागत चमकीले लाल, कम तीखे कंद के 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन की तुलना में अधिक आकर्षक बनाता है। रा.न.प्र. ने रबी मौसम 2010-11 के दौरान सब्जी शोध फार्म, सब्जी विज्ञान विभाग, एसीएसएचएयू हरियाणा में प्रजाति की जांच की सुविधा उपलब्ध कराया। परिणाम के अनुसार प्याज की प्रजाति ने कंद की उच्च उपज (368.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर), कंद का वजन और व्यास हिसार-2 की तुलना में काफी अधिक है। अन्य विशेषताएं जो इस प्रजाति को अलग करती हैं वह हैं कंद का गहरा लाल रंग, सूखा छिलका और पत्ते का गहरा हरा रंग। हालांकि बलवान सिंह के पास छोटा खेत था और नई प्रौद्योगिकियों की उपलब्धता भी सीमित थी, लेकिन वह दूसरे किसानों के प्रजातियों की तुलना उच्च उत्पादन देने वाली प्रजाति विकसित करने में सफल हुए। वह हरियाणा और आसपास के करीब एक हजार किसानों में इस प्रजाति की बीज को वितरित कर चुके हैं। हिसार, भिवानी और इससे सटे इलाकों में ‘बलवान प्याज’ इसका जाना माना नाम है।

मान्यता दिलाने का प्रयास

बलवान सिंह ने अपने मनभावन स्वभाव के कारण अपने गांव, समुदाय और स्थानीय प्रशासन में एक सम्मानित स्थान हासिल किया। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कर्मियों के समर्थन को विशेष तौर पर माना जो समय-समय पर मार्गदर्शन देने के साथ-साथ उन्हें नवीनतम प्रौद्योगिक से मदद करते थे। 2011 में राष्ट्रपति भवन में आयोजित नवप्रवर्तन प्रदर्शनी में अपनी प्रजाति प्रदर्शित करने का मौका रा.न.प्र. ने उपलब्ध कराया। वह विभिन्न कृषि उत्पादों की प्रदर्शनी में हिस्सा ले चुके हैं और पुरस्कार भी जीत चुके हैं। उनके कार्य को स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया ने उसी रूप में प्रसारित किया है। उदार व्यक्ति होने के कारण वह अपने ज्ञान और बीज को दूसरों की संपन्नता के लिए बांटने से नहीं हिचकते हैं।


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