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Thursday 23 March 2017

मशरूम की खेती के लिये नया अविष्कार कम्पोस्ट तैयार करने वाली मशीन |

हरियाणा के पानीपत जिले का सींख गांव | इसके बारे में सोचने से पहले आपके मस्तिष्क में कोई और चित्र भले ही हो , परन्तु यहाँ के खेत , खेती और यहाँ के किसान के बारे में जान कर आपकी धारणा पूरे तरीके से बदल सकती है | इस गांव में स्थित है जितेंदर मलिक का माडल कृषि फार्म जो उनके अथक प्रयासों एवं प्रयोगधर्मिता की कहानी खुद सुनाता है | उनकी किसानी के कई ऐसे पहलू हैं , जिनके बारे में आम किसान सोचता भी नहीं |


37 वर्षीय यह किसान एक संयुक्त परिवार में रहता है | इनके पिता का नाम श्री शीशराम और माता का नाम प्रेम कौर है | इनके तीन भाई है , जिनका नाम– जसवंत सिंह , नरेश सिंह और रमेश सिंह है | भाइयों में ये सबसे छोटे हैं | इनकी पत्नी तुनकी देवी है, इनके दो बच्चे है – बेटी का नाम – हिमांशी व बेटे का नाम अभिषेक है | इनकी माता जी का कहना है कि बचपन से ही जीतेन्दर को पढाई में रुचि नहीं थी , उनका ज्यादा ध्यान खेल – कूद में ही रहता था | बचपन में उन्हें जो भी खिलौने दिये जाते थे वे तोड़ दिया करते थे क्योंकि इन्हें यह जानने की इच्छा रहती थी कि यह चीज़े कैसे काम करती है | पढाई में रुचि न होने के कारण इन्होने मैट्रिक स्तर पर ही पढाई छोड़ दी और खेती में लग गए | 

इस साधारण से दिखने वाले किसान ने अच्छी खेती करने के लिए बहुत से प्रयास किये हैं | बात सन् 1996 की है जब जीतेन्दर ने अपने मामा के घर हिमाचल प्रदेश में मशरूम की खेती को देखा | वहां से लौटकर उन्होंने अपने खेतों में मशरूम की खेती करने की सोची | उन्होंने 100 क्विंटल खाद की क्षमता वाला एक मशरूम शेड तैयार किया | इस मशरूम शेड को तैयार करने के लिए 80 छेद करके उनमें बांस के पिलर लगाये गए जिसे बनाने में दो मजदूरों का पूरा दिन लग गया और फिर भी मजदूरों द्वारा बनाये गए उन शेड व छप्पर की गुणवत्ता स्थिर नहीं थी | यही कारण था की सन् 2002 में उन्हें मशरूम की खेती के अच्छे परिणाम नहीं मिले क्योंकि बांस के छप्पर की लाठियां ठीक ढंग से नहीं लगायी गयी थी | 

जीतेन्दर जी के समक्ष एक समस्या यह थी की उन्हें मशरूम शेड तैयार करने और कम्पोस्ट तैयार करने में अधिक मजदूरों की जरूरत पड़ती जिससे लागत अधिक लगती थी | दूसरी समस्या यह थी कि मशरूम की खेती के लिए जब कम्पोस्ट तैयार किया जाता था तब कई बार मजदूर नहीं मिल पाते थे जिससे कम्पोस्ट के खराब होने का डर रहता था और उसमें गांठें बनने से मशरूम में रोग लगने का डर भी अधिक रहता था | 

इन सभी समस्याओं से जूझने पर उन्होंने सन् 2008 में सोचा कि उसे कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे स्वस्थ कम्पोस्ट तैयार हो जाये और उसे किसी पर आश्रित भी न होना पड़े | फिर उन्होंने अपने भाई से कुछ रुपये उधार लिए और दो सप्ताह के अंदर एक ऐसी मशीन तैयार की जो मशरूम की खेती के लिए कम्पोस्ट तैयार करने में सहायक है जिससे उन्हें मजदूरों पर आश्रित होने की जरूरत नहीं है और वह स्वयं उसे संचालित कर सकते हैं | 


यह एक बिजली से चलने वाली मशीन है जो सीधे चलती हुई कम्पोस्ट के ढेरों को काटती , पलटती है और सभी पदार्थों को आपस में मिश्रित कर देती है जिससे आवश्यकतानुसार उसमें नमी मिल जाती है और दोबारा भी उस खाद को लाइन में लगा देती है | जीतेन्दर जी अपने खेतों में सिर्फ सर्दी के मौसम में ही मशरूम की सफ़ेद बटन किस्म उगाते हैं | कम्पोस्ट बनाने का काम और शेड बनाने की तैयारी साथ – साथ चलती रहती है | कम्पोस्ट बनाने के लिए तैयार किये गए पदार्थ(स्पान) को खेत में 4 लाइनों में फैलाना और मिलाना होता है व प्रत्येक लाइन 4 फीट की होती है | इसे लगातार मिलाया जाता है जिससे नमी बनी रहे और ये सूखे नहीं | प्रत्येक लाइन को 2 दिन के अंतर पर पलटने या मिश्रित करने की आवश्यकता पड़ती है | इस प्रकार इस पूरी प्रक्रिया में 28 – 30 दिन लग जाते हैं | उन्होंने बताया कि कम्पोस्ट को हम सातवीं बार पलटने पर तैयार मान सकते हैं | तैयार किये हुए कम्पोस्ट में नमी होनी चाहिए लेकिन वह चिपचिपा नहीं होना चाहिए |

कम्पोस्ट तैयार करने वाली मशीन की 2 मोटर है, एक मोटर 10hp की है जो ब्लेडों को घूमने में मदद करती है और दूसरी 2hp की है जो पीछे के पहियों को घुमाने में सहायक है | इस मशीन का वजन 10 क्विंटल है | यह मशीन 7 फीट ऊंची , 7 फीट चौड़ी व 15 फीट लम्बी है | यह मशीन 200 फीट लम्बे, 4 फीट ऊंचे व 4 फीट चौड़े ढेर को 25 मिनट में उलट – पलट करके अच्छी तरह मिला देती है | इस मशीन की सबसे बड़ी बात यह है कि इसे चलाने के लिए केवल एक व्यक्ति की जरूरत पड़ती है | जीतेन्दर जी ने बताया कि इस मशीन के इस्तेमाल से उन्हें मशरूम के उत्पादन में अधिक लाभ हुआ है |

इस मशीन के अनेको फायदें है , क्योंकि यह कम्पोस्ट को अच्छी तरह से पलट और मिला सकती है जिससे खाद में कोई भी गांठें नहीं रहती और मशरूम में रोग लगने की भी सम्भावना कम रहती है | इस मशीन के इस्तेमाल से न केवल लागत कम आती है बल्कि कम्पोस्ट तैयार करने में समय भी कम लगता है | इस मशीन को बनाने में उन्होंने 35,000 से 40,000 रूपए तक की लागत लगाई है | जीतेन्दर जी ने फ़िलहाल यह मशीन सिर्फ अपने लिए बनाई है लेकिन वह आगे भी इस मशीन में कुछ सुधार करना चाहते है ताकि यह मशीन उनके और अन्य किसानों के लिए और अधिक फायदे मंद हो सके | 

जीतेन्दर जी ने अपनी इस कम्पोस्ट बनाने वाली मशीन को 2015 में ही पेटेंट करवाने के लिए आवेदन किया है | देश और हरियाणा में विशेष रूप से मशरूम उद्योग में उनके योगदान को देखते हुए ‘मशरूम अनुसंधान निदेशालय’ सोलन , ने उन्हें ‘प्रगतिशील मशरूम उत्पादक पुरस्कार – 2013’ से सोलन में आयोजित ‘राष्ट्रीय मशरूम मेले’ के दौरान सम्मानित किया |

इस अविष्कार के विषय में अधिक जानकारी के लिए आप हमारे कार्यलय के टेलीफ़ोन नंबर पर जीरो सत्तरह बासठ दौ सौ सत्तर दौ सौ पांच एक बार फिर सुनिये जीरो सत्तरह बासठ दौ सौ सत्तर दौ सौ पांच पर सोमवार से शनिवार सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक बात करके जानकारी प्राप्त कर सकते है | आप हमें अपने विचार ईमेल भी कर सकते हैं | हमारा ईमेल पता है sakshamlive@gmail.com हैं |

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