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Tuesday 28 March 2017

सड़कों से गुमशुदा बच्चों को ढूंढ कर उन्हें घर पहुंचाता है दिल्ली का यह ऑटो ड्राइवर

पेशे से ऑटो चालक अनिल कुमार की ज़िंदगी सुबह 8 बजे से शुरू होती है. वे अपने ऑटो रिक्शा को निकालते हैं और यात्रियों, सवारियों के लिए राजधानी की सड़कों पर चारों ओर घुमते हैं. वे पीसीआर स्टाफ, यातायात पुलिस और अन्य बीट अधिकारियों सभी से अच्छी तरह से परिचित हैं. वे उन सभी को रास्ते में एक विश्वास भरी मुस्कान देते हैं और दुआ-सलाम करते हैं और अपने दैनिक मार्ग दक्षिण-पूर्व दिल्ली की ओर निकल जाते हैं.

यात्रियों और सवारियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के अलावा संगम विहार निवासी 40 वर्षीय अनिल कुमार ने एक और जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले रखी है. जैसे-जैसे उनकी ऑटो दिल्ली की सड़कों पर आगे की ओर बढ़ती जाती है, उनकी नज़रें भूले-भटके और असहाय बच्चों की तलाश करती रहती है. जब भी उनकी नज़र किसी असहाय बच्चे पर पड़ती है और वे उसे भटकते हुए पाते हैं, तो ऑटो रोक कर वे उस बच्चे से पूछताछ करते हैं, अगर वह अपना रास्ता भूल गया है, तो उस बच्चे को अनिल उसके घर तक पहुंचाते हैं.


खास बात ये है कि कुमार पुलिस के संपर्क में रहते हैं. जब भी कोई बच्चा किसी क्षेत्र में गुम हो जाता है, तो उसकी जानकारी कुमार को हो जाती है. और कहीं न कहीं सड़कों पर कुमार उस बच्चे के मिलने की उम्मीद में घूमते रहते हैं.

सड़कों पर असहाय बच्चों को तलाशने के बारे में अनिल कुमार कहते हैं-'इसकी शुरुआत कब और कैसे हो गई, मुझे पता ही नहीं चला. लेकिन अब इस काम को मैंने जिम्मेदारी के रूप में ले लिया है. कुछ दिनों पहले नेहरु प्लेस में एक 8 साल के बच्चे को मैंने सड़क पर घूमते देखा. वह खोया हुआ दिख रहा था और बहुत रो रहा था. मैंने उस बच्चे से पूछा कि तुम यहां कैसे आये. उसने मुझसे कहा कि उसने एक बस ली थी, और उसका घर यहां से काफ़ी दूर है. मैंने उस बस के बारे में पता लगाया, और तब जाकर मुझे पता चला कि वह बच्चा द्वारका से भटक कर यहां आ गया है.'

कुमार ने कहा -'मैंने उस बच्चे से पूछा कि क्या उसे अपने माता-पिता का फ़ोन नम्बर याद है. तब उस बच्चे ने मुझे एक नंबर दिया. नसीब अच्छा था कि जब मैंने उस नंबर पर फोन मिलाया, तो फोन पर उस बच्चे की मां थी. उन्होंने कहा कि वे द्वारका में रहती हैं. मैंने उस बच्चे को उसके घर तक छोड़ा और उसकी मां काफ़ी खुश थीं. उस वक़्त मुझे काफ़ी संतुष्टि मिली.'


उसी दिन के बाद से अनिल ने सड़कों पर अकेले घूमने वाले बच्चों को तलाशना शुरू कर दिया. एक अन्य मामले में 13 मई को जब वे एक सवारी को कालका जी मंदिर छोड़ने गये थे, तब उन्होंने एक चार साल के बच्चे को देशबंधु कॉलेज के पास सड़क के किनारे बैठा पाया. उन्होंने बच्चे से बात करने की कोशिश की लेकिन उसने कुमार से बात करने से मना कर दिया.

उनके अनुसार, 'वह बच्चा काफ़ी रो रहा था. मुझे पता था कि वह अपना रास्ता भूल गया है. मैंने उसके लिए एक Soft Drink खरीदी और फिर उससे उसके मम्मी-पापा के बारे में पूछना शुरू कर दिया. लगातार तीन घंटे तक मैं उस बच्चे को B, C और E ब्लॉक में डोर-टू-डोर ले गया, पर उस बच्चे के मां-बाप का कोई पता नहीं चल पाया. जब मैं उस बच्चे के अभिभावक को नहीं ढूंढ सका, तब जाकर मैंने उस बच्चे को स्थानिय पुलिस के हवाले कर दिया.'


'मैं और बीट कांस्टेबल फिर से उस बच्चे को उस क्षेत्र के चारों ओर लेकर गये. अंत में एक आदमी ने उस बच्चे को पहचाना और उस बच्चे के घर का पता बताया. उस बच्चे के दादा उसका इंतज़ार कर रहे थे और उसे देखकर काफ़ी खुश हुए.'

इन घटनाओं के बाद कुमार पुलिस से उन बच्चों की डिटेल साझा करने को कहते रहते हैं, जो बच्चे गुम हो जाते हैं. इसलिए वे सड़कों पर वैसे बच्चों की तलाश करते रहते हैं, ताकि वे उन बच्चों को उनके परिवार से मिला सकें.

वे कहते हैं 'इन दिनों कई तरह की घटनाओं में बच्चों के शामिल होने की बात से मैं डर जाता हूं. शहर को सुरक्षित बनाने में हर नागरिक की भागीदारी महत्वपूर्ण है. मैं कोई असाधारण काम नहीं कर रहा हूं. मैं सिर्फ़ अपना कर्तव्य निभा रहा हूं. जिस तरह से मेरे दो बटे हैं-एक 6 साल और दूसरा 11 साल का, ये भूले हुए बच्चे मेरे बच्चों की तरह ही हैं और उन्हें उनके घर पहुंचाना मेरी जिम्मेदारी है.'

दिल्ली, दक्षिण-पूर्व के डीसीपी एम.एस. रंधावा कहते हैं कि 'अगर हर नागरिक कुमार की तरह ही सक्रिय, मददगार के रूप में शामिल हो जाए, तो निश्चित रूप से अपराधों को रोका जा सकता है. कुमार के इन्हीं कामों की बदौलत मैंने उनका नाम एक विशेष पुरस्कार के लिए नामित किया है.'

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